बंद कर ये
रिवाज़,
ये श्राद्ध का रिवाज़,
ये रोने का
रिवाज़,
ये दिखावे का रिवाज़
I
माला मुझे भारी
लगे ,
तस्वीर तक़दीर से अलग
लगे ,
के ऎसे मैं
अलग हुआ,
कल का सच
अब झूठ हुआ
I
अस्तित्व को मिट
जाने दे,
मुझे आज़ाद हो
जाने दे,
मेरी मौत मुझे
दे दे
जो आये ना
आये
वो जीवन अपना
ले I
###
रचना: प्रशांत
###
रचना: प्रशांत
No comments:
Post a Comment