एक शाम गुज़रती नहीं,
एक साल गायब हो जाती है I
तेरे इंतज़ार में ऐ सनम,
उमर बिन गिने हीं बीत जाती है I
मेहबूबा हज़ारों हमने देखे,
पर न ज़ुल्फ़ बदल बने,
न आँखे काजल बने ,
न खूशबू हीं रूह में झलके I
उस रात के राख की रेत मुट्ठी में है ,
मुहब्बत के अंगार आँखों में,
पर तुम्हारा नशा मेरी साँसों में आज भी ज़िंदा है
ऐसे जैसे धड़कता है दिल सीने में I
रचना: प्रशांत
एक साल गायब हो जाती है I
तेरे इंतज़ार में ऐ सनम,
उमर बिन गिने हीं बीत जाती है I
मेहबूबा हज़ारों हमने देखे,
पर न ज़ुल्फ़ बदल बने,
न आँखे काजल बने ,
न खूशबू हीं रूह में झलके I
उस रात के राख की रेत मुट्ठी में है ,
मुहब्बत के अंगार आँखों में,
पर तुम्हारा नशा मेरी साँसों में आज भी ज़िंदा है
ऐसे जैसे धड़कता है दिल सीने में I
रचना: प्रशांत
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