क्यू तू रूके उस मंज़िल पे,
जहाँ तेरा वज़ूद ना दिखे ,
कर बुलंद हौसले, निकल पड़,
एक नये दुनिया के खोज मे,
एक नये पहचान के खोज मे I
जा पहुँच उस मुकाम पर,
जिसे पा कर तुझे सुकून आए,
ज़िंदा कर हूनर, जो तेरेकाम आए,
अनमोल एहसास तेरे नसीब आए,
अपने समय को तू फिर,
एक नयी पहचान देता जाए I
रचना : प्रशांत
जा पहुँच उस मुकाम पर,
ReplyDeleteजिसे पा कर तुझे सुकून आए,
ज़िंदा कर हूनर, जो तेरेकाम आए,
अनमोल एहसास तेरे नसीब आए,
अपने समय को तू फिर,
एक नयी पहचान देता जाए I
सरल , सुन्दर और प्रेरित करते शब्द !!
धन्यवाद योगी सारस्वत जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मधुलिका जी !
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