चित्र साभार :
ये कैसी दौड़ है,
ये क्या किनारा है,
लाशें जहाँ ज़िंदा
हों,
ईमान मुर्दा कफ़न हो
I
किस बात की
यह आज़ादी,
मासिक सुविधा की राजनीति,
कुछ भागे रिश्ते
छोड़ ,
कुछ बिके कीमत
तोड़,
कुछ मेहनत करते कमर
तोड़,
कुछ चामचा बढ़े नीति
तोड़ ,
सलतनत छोटे नवाब
का हो,
रफ़्तार डी एन
ए मिरकासिम हो,
चाणक्या चाल शिक्षविदों
में हो,
निगम शासन राशन
मे हो I
तो करता है
जी की लग
जाए आग,
इस दुनिया को और
भस्म हो
जाये,
ये जहान अपने
बेईमान कदरदान के संग
I
तो जी करता
है की ढल
जाए ये शाम,
कभी सुबह न
होने को,
के रात की
राख में सिसके
बेईमानी
कभी न होने
वाली सुबह में
दफन होने को
I
रचना : प्रशांत
शब्दों के अर्थ :
सलतनत छोटे नवाब
का हो--Promoter
मिरकासिम--Company
director
निगम शासन ---Corporate / Institutional
Governance
राशन--
Salary Determination, Show-Off
वर्तमान से जूझना अपने मन मस्तिष्क को फोड़ने जैसा है
ReplyDeleteआपकी रचना वर्तमान के भयावह सच से लड़ने का साहस देती है
उत्क्रष्ट प्रस्तुति
बधाई --
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आपका मेरे ब्लॉग पे स्वागत है ज्योति जी !
Deleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद