चित्र साभार : http://img00.deviantart.net/4e8a/i/2010/038/0/8/unveiling_the_shadow_world_by_yamaha_neko.png
जाने क्यू आज ऐसे लगे,
मेरे इंतेज़ार की इंतहाँ है,
जाने कितनी शामें बित गयीं,
फिर मेरे इंतेहा की इंतेज़ार है I
बात इतनी सी थी,
जो वो नासमझ रूठे हम से,
इतनी सज़ा दे वो खुदको,
की हम रूठ चले I
साथ वो अपने निभाते चले,
रिश्तों से आज़ाद रिश्ते निभाते चले,
खुद वो आग मे जलते रहे,
खामोश आग रूह मे लिए,
हम राह मे जले और चले I
रचना: प्रशांत
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