बंगाल कहो या ओड़ीसा,
लगे लोगों में यह नशा,
काम भले हो या ना,
पैसे हो जल्दी दुगुना I
बीमारी यह कहाँ से आए,
पल भर मे करोड़ लूट जाए,
असेंब्ली फिर बंद हो जाए,
शाशक , विरोधी राहत पाए I
रुपए एक में चावल मिल जाए,
घर आगे जहाँ काम मिल जाए,
दस्तख़त भरे, काम ना करे ,
आधी पघार खाते जूड जाए I
प्रगती की खर्चे से, जेब भर जाए,
माल खरीददारी, सरकार बताए,
बिना आमदनी, तो बीमा बचाए,
प्रकृति के रोष, पैसे फिर आए I
इलेक्शन दौर हो, बात बड़ी हो,
प्रचार, प्रसार, निबेदन का निमंत्रण,
जनता दिखे, ईतनी वाईदा,
यहा जीने का कितने फ़ायदा I
हर कदम, हर मोड़ वो जीता,
बीपीएल दे फिर, राशन सुविधा,
काम दिलाए, बाकी कुछ जनता,
सरकारी भत्ता, वेतन सुविधा I
काम की कमी, इनको ना सताए,
काम की कीमत, फिर बढ़ जाए,
एक रुपया क्या क्या कर जाये,
चावल एक केजी, पर नमक ना आए,
लाखकी खर्चा, कुच्छ मईने ना जाए I
रुपया का कीमत, समझ ना आए,
चिट फंड ऐसेमें काम कर जाए,
लखोके सपने, महीनोमे दिखाए,
ब्लाक मनी आकर वाइट हो जाए I
सही आदमी मुँह काला कर जाए ,
आसानी हो पैसे, आसान हो जुगाड़,
चिटफंड की बीमार, आसानी सी बीमार,
दरिया का पानी दरियामे डाल,
यह समस्या और ना उछाल I
रचना: प्रशांत
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