क्यू तू सोचे क्या ना हो, इस जहान मे,
अपना हिसाब तू तो करले , इस जहान मे I
जो ना तेरा , ना हिसाब ले, तेरे हिसाब मे
ना याद कर, क्या काम है, इस जहान मे I
ना जीने दे, जो ना जीया, जी कर भी,
जब तलग जी, ख़यालों मे , जी भर के जी I
तू तो आज़ाद, तू तो बंजारा
तेरे जखमो का तू ही मरहम ,
तू ही खुदा , बस तू ही इल्ज़ाम ,
तेरे साँसोमे बसे है तेरा ईमान ई
वो ना आए , वो ना चाहे, चाहे राहे
तो यह बाहें , यह निगाहें, काहे चाहे ?
अब तो जी ले, थोड़ा जी ले, माफ़ी दे खुद को
बहारो मे आशिक़ों में, हो शामिल, माफ़ी दे खुद को I
रचना : प्रशांत
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