एक पहचान, जो दूर तक तुम्हे अलग पहचान दे ,
या एक पहचान, जो तुम्हारे लाखो पहचान छुपा दे I
दिल ढूंढे एक पहचान, जिससे रोशन लाखो और चेहेरे,
वरना कीमत तो ले, और सिर्फ़ परदे से बने ये चेहेरे I
बदल क्यूँ जाते हो लोग, जब तुम्हे दे ये चेहेरे,
वोही पहचान से वो डरे, जब काम करे ये चेहेरे I
बने क्यूँ ऐसा दौर, जो बने समझौता-ए-वफ़ा ,
मलिक-ए-हुज़ूर हो नसीब कुछ पल की वफ़ा I
रचना: प्रशांत
बढ़िया कृति
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता !
ReplyDeleteAwesome mesmerized
ReplyDeleteThanks Mohan
Delete