आज सदीओ के बाद खुदको हम संभाले हुए हैं
कितने छुपे राज़ को पंख अरमान देते हुए हैं I
डर है की नक़ाब गुम ना जाए सारे आम परदा ओढ़े,
और बेआबरू खुद को ना पाए,
ईसी पत्थर मे भी दिल अगर जमाना जान ना पाए,
अपनी जान से अंजान अगर जमाना जान ना पाए ,
तो क्या ना हो जाए,
प्यासा अगर जमाने का प्यास बुझाए डूब जाए ,
पर किनारा दुनिया को दिखाए I
ख़ुशी होगी ऐसे ही अर्पण मे ,
जमाना से दूर जमाने को समझ ने मे I
कितने छुपे राज़ को पंख अरमान देते हुए हैं I
डर है की नक़ाब गुम ना जाए सारे आम परदा ओढ़े,
और बेआबरू खुद को ना पाए,
ईसी पत्थर मे भी दिल अगर जमाना जान ना पाए,
अपनी जान से अंजान अगर जमाना जान ना पाए ,
तो क्या ना हो जाए,
प्यासा अगर जमाने का प्यास बुझाए डूब जाए ,
पर किनारा दुनिया को दिखाए I
ख़ुशी होगी ऐसे ही अर्पण मे ,
जमाना से दूर जमाने को समझ ने मे I
रचना : प्रशांत
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