चित्र साभार : http://pixabay.com/en/snowball-fight-snow-winter-young-578445/
फिर एक बार दिल तो चाहे के,
खंजर चुभे, और दिल की प्यास बुझे ,
इल्तिज़ा बस इतनी ही है हमारी के ,
फिर से दिल को लगे
दवा मुहब्बत की ज़हर I
चोट खाए अगर अपनी हीं करम से,
तो भाई खूब है, मंज़ूर भी वोही,
फिर एक मौत, जी भी लेंगे ,
मुहब्बत ईक और बार तो सही I
भले ख़ुशी हो, या हो ग़मों की ख़ुशी,
आज़ाद गिरने की डरसे खुशी ,
जिंदा हूँ , यह एहसास कम तो नही,
मरता भी हूँ , यह भी कम तो नही I
अपना लिया, यह कुछ कम तो नही ,
पल जो जी लिया, यह भी कुछ कम तो नही I
रचना : प्रशांत
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