Thursday, 22 December 2016

लव दस नंबरी!

शुरू  हो उस्ताद, एक फिर हो जाए.. 
दिले शौकीन, दिलदार मिल जाए..
कोई और प्यार तू छेड़े, और पाए..
पुराने प्यार. दूसरो मे पाए जताए 
खुदासे तू भीड़े, हासिल कुछ आए 
कितने और रोए, खो कर जीए ... 
बस तू गाए, एक और बदनामी जी जाए ..
शुरू हो जाना वो अंजाना सफ़र...
तेरा सफ़र वो प्यारा सफ़र
तुझे देख हर रांझा यह कहे..
आगे होगी ज़िंदगी और सुनहरे
हज़ारो ख्वाइस-ए-मुहब्बते तू बन.
आशिक़ो का शाहेंशाह तू बन... 
तेरे दरपे सब को हो कल्याण..
तू कहलाए प्रेमदेब, तू रहे महान...

रचना : प्रशांत 

शाम के पल...

शाम के पल, ना महके ना गुज़रे,
चाहे, मोहब्बत किस्मत  ना सँवारे,
मन की बात गले से ना उतरे,
जाम सजे, अंजान आप से रहे,
कितने थे रंग शाम साज़ ये गहरे,
दिलकश वो पहरे,
ना दिल ना ठहरे, ना ठहेरे,
पैमाने छलके, दे तुझे इशारे,
हसीनो की बाज़ार, हुस्न ही हारे I

चेहरे जगाए , यह चेहरे शराबी,
याद सताए, यादों का गुलामी,
इश्क़ के धागे , सपने फरेबी,
कतरा यह पानी, कतरा शबनमी,
कितने थे रंग शाम साज़ ये गहरे,
दिलकश वो पहरे,
ना दिल ना ठहरे, ना ठहेरे,
पैमाने छलके, दे तुझे इशारे,
हसीनो की बाज़ार, हुस्न ही हारे I

चेहरे जगाए , यह चेहरे शराबी,
याद सताए, यादों का गुलामी,
इश्क़ के धागे , सपने फरेबी,
कतरा यह पानी, कतरा शबनमीI

रचना : प्रशांत 

Thursday, 8 December 2016

कहने दे आज मुझे!

कहने दे आज मुझे,
जाने से, यादों मे तू  ज़िंदा,
आने से, साँस रुक से जाए,
यादों से, ये जान आज भी फिदा ...

ना खबर, तुझे है खबर तो बता , 
क्या ठिकाने, यह सफ़र का पता,
होश आए बार बार, जग को क्या पता ,
उस नज़रसे लापता, इस नज़र की पता ई

रचना : प्रशांत 

हाले दिल तुम्ही को कैसे सुनाउ?

हाले दिल तुम्ही को कैसे सुनाउ?
नज़र जो आउ, नज़र ना आउ..,
हाले दिल तुम्ही को कैसे बताउ?
बाते बनाउ , बात छुपाउ,
हाले दिल तुम्ही को कैसे बताउ?
नींद जगाउ, नींद ना पाऊ,
हाले दिल तुम्ही को कैसे बताउ,
दिलको हारूं, दिलको चाहूं,
हाले दिल तुम्ही को कैसे बताउ? 

रचना : प्रशांत 

Friday, 18 November 2016

अगर ग़ालिब साब अपना कीमत लगाते...

अगर ग़ालिब साब अपना कीमत लगाते
महफ़िलोको खाली तड़पते , खो जाते
और आप जनाब भूके रहते और कहते
खरीद को सब मिलते, आँसू बेवफा गिरते I

रचना: प्रशांत

Wednesday, 16 November 2016

हज़ार की मौत !



बेआबरू हुआ एक रिवाज
बेआबरू था एक समाज...
हम थे गम के नवाज़ 
खाली पॉकेट , सरकार पे नाज़ I 

एक कदम सही दिशा के और
कई उलझने, कई कमाई से चोर
बड़ी तकलीफ़ दिन गुज़रे चार 
अपनाही धन, फ़ासले थे दूर I 

काले धन खोज परिणाम
काश छुप गये, हुए ना-काम 
काले चेहरे का लगे इल्ज़ाम
हज़ार हज़ार नोटो पे लगाम..
एक शाम अपनाने पहुँचे मयखाने,
रंग थे गहरे, संग जाम अपनाए चेहरे 
आए पहुँचे तेरे दुआर-ए- प्यार
दीदार इस्क़ , नज़रे हुई चार I 

निकले शाम की लगाई कीमत,
मिली नसीब सदीओ की सादात,
अजीब था वो शाम-ए-जाम की नशा,
हुकूमत का धोका, चले प्याला और प्यासा I 

रचना : प्रशांत 

Monday, 7 November 2016

वक़्त का मालिक





वक़्त किसी  का नही होता,
बच जाए तो खाली जाता, 
निकल जाए तो रो देता,
रुक जाए तो गिनती मे नही आता,
साथ दे तो जीवन सुधार देता I 

सफ़र रेल या आसमान का हो,
ऐ दोस्त पंख दोनो मे है,
अगर समय याद भर दे, 
मंज़िल को राह मुसाफिर दे I 

रचना : प्रशांत 

एक बार और सही...





एक बार और सही, 
यह सफ़र मुझे कहीं ले जाए,  
मेरा  शहर  मुझसे दूर हो जाए,
आजनाबी ठिकाने दिल अपनाए,
पल हसीन साथ ले आए, दे जाए I

ए खुदा बस इतनी दुआ हो,
तेरी तलाश यह ज़िंदगी हो,
कीमत मे, नसीब को हासिल ये आए,  
पुराने ठिकाने आए और साथ दे जाए I

रचना: प्रशांत 

ଏକା ଏକା କିଛି ଭାବେ



ନିଜ ପାଇଁ ସମୟକୁ ଯଦି 
କିଛି ଦେଇ ପାରେ କେବେ 
କଣ କଣ ଭାବେ ତେବେ
ମୁଯେ ଲେଖି ଦିଏ ଏବେ I 

କାହାକୁ ବା କିଛି କ୍ଷଣ 
ହୁଏ ଟେଲି ଯୋଗାଯୋଗ 
ଅବା ସମୟକୁ ନିରିଖେଇ 
ଇଏମଆଇର ଚାଲେ ଯୋଗ ବିୟୋଗ I 

ଜୀବନର ଅଙ୍କକଷା କଣ 
ସମୟର ପଶାଖେଳ ରାଜନୀତି 
ପିତୃ ସ୍ନେହ, ବାଲ୍ୟମୋହ ବଜାର ବିରତି 
ବଜାର ମୂଲ୍ୟ ଚଢାଅଙ୍କ ସାଇତି 
ସମାଜର ମୋହ, ଏଠି ନୁହେ ଦରନୀତି I

पासेंजेर वेटिंग लिस्ट १०



निकले या रुक जाए, 
कुछ ऐसा मन मे लिए, 
निकल पड़े स्टेशन की ओर, 
पुराना था रिश्ते  गहरे, 
कहीं मिल जाए पुराने चेहरे I

रेलवे की कहानी बड़ी मस्तानी, 
कभी दाम पूरा ले, पर नाम ना दे, 
पल पल आवाज़ दे, और छोड़ दे, 
तेरी मंज़िल के तरह वो निकले, 
तुझे ले, यह तुझे छोड़ चले I 

कुछ एक कहानी आज हुआ,
नाम बदला वेट लिस्ट 10 हुआ, 
समय हुआ और वोही रुक गया,
निकल पड़े इस अजनबी नाम से,
बहुत थे साथी, अजनबी हम हुए,
हँसते रहे, दीवाली बधाई देते रहे,
कोई हमदर्द साथ दे और ले ,
कहानी के मोड़ कुछ तो बदले, 
उमीद, ना उमीद के थे मेले,
चल पडे अब घर को निकले I

रचना : प्रशांत  

Sunday, 30 October 2016

ଜଳା ସଳିତାର ଇତିହାସ



ଦୀପ ମାଳାର ସହର ଆଜି ଉଦ୍ଭାସିତ 
ଊହଲାଦ, ଉନ୍ମାଦ , ରାତ୍ରି ଆଲୋକିତ I
କୁଟୁମ୍ବ ମିଳନ, ଭେଟି ଭାବର ଚଳନ
ଭୋଜି ଆମନ୍ତ୍ରଣ, ଆକାଶ ଜଳନ I
ଲକ୍ଷ୍ମୀ ଆବାହନ, କାଳୀମାର ପୂଜନ 
ଜୀବର ନିଧନ, ଧନ ବିସ୍ଫୋରଣ I
ବେଶ ପରିଧାନ, ବ୍ୟବସାୟଭି ନୂତନ 
ଆକାଶ କମ୍ପନ, ବ୍ୟବସାୟିକ ମିଳନ I
ଧରିତ୍ରୀ ବ୍ୟଥିତ, ବାରୂଦ ରଞ୍ଜିତ
ନିର୍ଧନ ଅତୃପ୍ତ, ଦହନ ଗଗନ ମରୁତ I
ନୁହେ ଦୀପାବଳି ବିକଟାଳ ହସ
ବଳି ବଳଶାଳୀ, ମଧୁର କର୍କଶ I
ରଣହୁଙ୍କାର, ଦୀପ ୟେ ନିହତ 
ଜଳା ସଳିତାର ଇତିହାସ ଯେ ନିନ୍ଦିତ I

डीशूम ज़िंदगी!



काले नज़र, छुभा मीठी जहर,
काले रातें, मुझे भाए सहर, 
काले नक़ाब, रात बे-हिसाब, 
काले यह प्यास, काले गिलास !!
काले चस्मे, तू दिखे भीड़मे, 
काले यह रात, काले यह बात, 
काले यह मन, तन की यह बन,
काले ढन्दा, बिंदास ये बंदा !!
काले चादर, सफेदी नज़र, 
काले पैसे, दे सबको नशे, 
काले नियम, काला यह सच,
काले रिवाज, काले आवाज़ !!

रचना : प्रशांत 

Monday, 24 October 2016

फलसफा यही ज़िन्दगी का !





ख़तम सही हो ???
या हर बार शुरुआत नयी हो ???
तुझे पढ़ना मुश्किल ए ज़िंदगी,
समय बीत जाए, वो समय ना आए,
ना काया उमर पाए, साँस आए जाए,
ज़िंदगी तेरे पहचान क्यू छोटा होजाए,
बस तेरी कमाई आँकड़े मे डूब जाए....,
हर पल जियुं, या कल के पल सवारूं,
यह तय  हो जाना, क्यू हो मुश्किल,
जब ना यह साँस महफूज़ होगा,
काया से , तुझसे आज़ादी लेगा,
क्या होगा, महसूस ख़ालीपन होगा,
खाली जाएगा, खाली पल ले जाएगा..I

रचना : प्रशांत

Tuesday, 4 October 2016

आज जीने दे!



आज जीने दे
इस रात को जीनेदे
इस ख्वाब को ज़ीनेदे
इस राज़ को ज़ीनेदे
आज ज़ीनेदे


आज ज़ीनेदे,
उस रात को ज़ीनेदे,
उस ख्वाबो को ज़ीनेदे,
उस राज़ को ज़ीनेदे,
आज ज़ीनेदे I 

आज ज़ीनेदे,
जल जल जीने दे,
बस तू ज़ीनेदे,
रात एक ज़ीनेदे,
पीनेदे बहजाने दे ,
तेरे साथ जीनेदे,
तेरे ख्वाब आनेदे,
बस आज ज़ीनेदे I 

रचना : प्रशांत 

प्रोहिबिशन की कर्फ्यू!

यह शहर कैसा,
शराब बदनाम यारों,
ख्वाइसों  मे ज़िंदा,
दफ़न हुकूमत मे यारों...

गम ना कर ,
चाहनेवाले तेरे इस ,
शहर मे आज भी ज़िंदा,
और उनकी चाहत से
यह शहर आज भी है ज़िंदा..

रचना : प्रशांत 

कुछ तो है बात...






कुछ तो है बात,
इन जाम मे यारों,
जो हम तेरे हुए,
खुद संभाल ना पाए,
पर समझ तुमको आए ..
.
रंग नशे का यह नही,
यह दिल का हे यारों,
क्या गम पराया हुए,
कुदरत का पैगाम यारों I

जीतने हो ख़तम ये जाम,
हसीन सा भर दे जखम ,
यह इल्ज़ाम किस लिए,
खाली महसूस जिंदगी यारों ,
ज़ख़्म और होजाए गहरा ,
निभाने या मिटाने से यारों I

रचना : प्रशांत 

Saturday, 1 October 2016

ଶେଷ ଆବେଗ...

ଓଡିଶା ମାଟିର ଆମେ ଯେ ସନ୍ତାନ
ସେଇ ହେଉ ମୋର କର୍ମ ଭୂମି
ପ୍ରକୃତି ଭିତରେ ଭାଷା ଗନ୍ତାଘର
ସେଇ ହେଉ ତୀର୍ଥ ଭୂମି I
ଶୈଶବର ଛାୟା ଜରା ଶରୀରରେ
ଦେବଭୂମି ତଵ ଦେଵ
ଲୀନ ହେଇଯିବା ଧରା ପୃଷ୍ଠରୁ
ଠିକଣା ସମାପ୍ତ, ଆଉ ଆତ୍ମା
ଉଜ୍ଜୀବିତ ରହିଯିବ I
ଦେବତା ଆଶ୍ରୟ, ମାନବ ପ୍ରଶୟ
ନଥିବ ଆଗକୁ ଭୟ,
ପ୍ରାଣ ବାହାରିବ ଜଗାର ଆଶ୍ରୟେ
ରହିଯିବ ସେଇ ଠିକଣାରେ
କି ସୁନ୍ଦର ହେବ ଇତି ନ୍ୟାୟ
ନ ରହିବ ଆଉ ଭୟ I
ପୁରୀ ସ୍ୱର୍ଗଦ୍ୱାରେ ଉଦ୍ଧରିବ ତବ
ସାରଦା ବାଲିର ମୋହ
କିଛି ମୁଠା ତୋର ମୁଠାରେ ଧରିବ
ପାଉଁଶ ମୁଠିକ କଣେ ମିଶିଯିବ
ପୁଲକିତ ମୃତ୍ୟୁ
ଶେଷ ଭିକ୍ଷାରେ ହୋଇବ I-

Friday, 16 September 2016

एक शराबी से सवाल!



एक कतरा मे खुदा दिखे,
एक कतरा से खुदा बने,
मुहब्बत वो बाँटता जाए, 
प्यासा, तरसा खुद रह जाए I

सवाल उनसे खुदा करे, 
आ किस्मत बदल प्यारे,
सब पे मरे , सब से हारे,
ईन्तेकाम हम मुक़दार करे I 

तारीख तू माँग भाई शराबी, 
खुदा बरकत करना चाहे,
आपनी मौत तू जिले,मांगले,
मेरे जन्नत यू क़बूल करले I 

यह कहने भगबान, 
मैकदे आए , देखे, घबराए,
शराबी जन्नत साथ ले आए ,
प्याले की कमी से ,
कितने मौत वो माँगे,
प्याला भरा छूट जाए,
कितने मौत वो गले लगाए,
मंदिर माने वोही दफ़न होना चाहे I 

रचना : प्रशांत 

Wednesday, 14 September 2016

यह कल किधर मिलेगा भाई...



यह कल किधर मिलेगा भाई,
क्या छोटू कुछ तो बोल, 
इधर सब लोचा है,
बोले तो बीड़ू आज एक, 
फिनान्सियाल प्लानर मिला, 
अपनका तो वॉट लगेला I

बोला तेरा सेविंग्स गुल हे रे, 
पक्का लाइफ होएंगा गॉन केस
बोलारे मेरेको, 
कुछ ऐसा-हिच बोलारे,
टारगेट बढ़ाना माँगता है,
सेविंग बढ़ना माँगता है,
फोन उठा और सुपारी ले,
और सर्किट जमकर कमाले I 

यह आज अपना कंट्रोल मे है,  
जब लफ्डा होएंगा कल,
तेरा फुल डार्लिंग जाएगा गुल I 

भाग जाएगी रे पैसा , लिसा, निसा,
होगा बिना पेनसन का टेनसनरे ...,
कोई मामू नही, 
महनगाई मIरेगी अपन को रे I 

प्लानर क्या कुछ डाला रे, 
दिमाग़ का चट्नी बना डाला,
फुल सिनीमाि दिखा डाला,
पैसे फुल और माल होगा गुल,
ऐसा होता क्या रे सर्किट ????
होएंगा ओं जाएगा गोली ,
बोले तो पिस्टल फुल और टारगेट गुल,
तेरा आज फुल और तेरा कल गुल,
उमर गुल तेरा उमर होगा गुल I

एधर अपॉन को फुल टेनसन रे,
ए छोटू फुल कटिंग ला रे I

पैसे होगा फुल और माल होगा गुल,
ट्रिग्गर होएंगा, जाएगा गोली गुम, 
बोले तो पिस्टल फुल और टारगेट गुल,
आज यह तेरा फुल, और कल यह तेरा गुल
उमर गुल तेरा उमर होगा गुल I 

कैसा प्रेज़ेंट ऑन, तो फ्यूचर गॉन  रे,
भगबान का बाप , इन्षुरेन्स क्या रे,
यह फिक्स्ड सेविंग्स बढ़ता कैसा रे,
शाला सेनसेक्स चड़ता कैसे रे I

सोना बॅंक मे रखने का 
और काग़ज़ लेनेका 
ज़मीन क़ब्ज़ा नही, खरीद नेका रे
टॅक्स मे सरकार को वसूली देनेका , 
क्या क्या बोला रे, समझ नही आतेरे
एक तो भेजा फ्राइ 
बोले तो फुल ऑफ कर दिया रे I

यह प्लानर तो अपुनका, पूरा गेम बजा डाला
शाला कालका बोला, और आज का धो डाला..
आज तो खलास होएंगा
टेनसन कैकू लेनेका
यह कल किधर मिलता रे
आज ही गेम बजा डालेंगे रे
डीशक़ुईईएं डिस्क़्क़ुई3उन...

रचना : प्रशांत 

Monday, 12 September 2016

जी भर, जी लेने दे साकी!




आज मर जाने दे साकी,
                                            एक ख्वाब जीने दे बाकी,                                              
आज पी लेने दे बाकी,
बह जाने दे सागर,
बस डूब ने दे मुझे,  
संभाल ने दे मुझे I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 
जो ना था कभी, था कभी, 
महसूस होने दे, जीने दे,
एहसास दे, एहसान करने दे,
ख्वाब दे , ख्वाबोंको मिलने दे I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 
पैमाने रंग भरे संग मेरे,
नज़ारा बार बार झलके,
सपनो से परे तक़दीर,
लकीरोंसे दिखे बेह्के I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I
जीने दे इन प्याले मे डूबके,
तसबीर दिखे, अलग भी दिखे,
अश्क छलकाए, पैमाने भर जाए,
नूर ना आए, लिहाज़ हो जाए I

आज मर जाने दे साकी
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 

रचना : प्रशांत 

Tuesday, 6 September 2016

ଅନୁଶୋଚନା ..



ଆଜି ନିଦ ନାହିଁ , ଆଜି ବ୍ୟଥା ନାହିଁ 
ଗନ୍ତବ୍ୟ ପଥର ଆଜି ଦିଗ ନାହିଁ 
ନିସ୍ତବ୍ଧ ରାତିର ସାଥି ଏକ ମୁହିଁ 
ଟୋଲଗେଟ ଦିଶେ , ପାଦେ ଆଗେଯାଇ I....

ହିସାବ ନିକାସ ସତେ ଆଜି ଏବେ 
ଚିଠା ନିଏ କୁହେ ଆଉ କିଛି ଦୂର 
ବ୍ୟସ୍ତ ଜନର ନା ଦିଶେ କୋଳାହଳ 
ଯୌବନେ ଧାଇଁଲେ , ଯୌବନ ଶିଥିଳ I..

ଭିଡ଼ର ମଣିଷ



ମଣିଷ ନୁହନ୍ତି ଖାଲି ପ୍ରତିଯୋଗୀ 
ବିଡମ୍ବନା ଏଟା ସମାଜ ପ୍ରବୃତି 
ନିଚ୍ଛକ ମିଥ୍ୟର ଶସ୍ତା ଆବରଣ 
ଗୋଲାପର ଭିକ୍ଷା କଣ୍ଟକ ବିହୀନ ..
ପଦ ପଦବିଟା ତୁମ ଆଚରଣ ସାର 
ଚରିତ୍ର ସଂଚୟ ଆଉ ଚରିତ୍ର ପ୍ରହାର 
ବୁଢିଆଣୀ ଜାଲ ଚକ୍ରବ୍ୟୁହ ରହସ୍ୟ 
ଜନତାର ନେତା ସମ୍ବିଧାନର ଔରସ

ଅନୁଶୋଚନା ..





ଆଜି ନିଦ ନାହିଁ , ଆଜି ବ୍ୟଥା ନାହିଁ 
ଗନ୍ତବ୍ୟ ପଥର ଆଜି ଦିଗ ନାହିଁ 
ନିସ୍ତବ୍ଧ ରାତିର ସାଥି ଏକ ମୁହିଁ 
ଟୋଲ ଗେଟ ଦିଶେ , ପାଦେ ଆଗେ ଯାଇ I....
ହିସାବ ନିକାସ ସତେ ଆଜି ଏବେ 
ଚିଟା ନିଏ କୁହେ ଆଉ କିଛି ଦୂର 
ବ୍ୟସ୍ତ ଜନର ନା ଦିଶେ କୋଳାହଳ 
ଯୌବନେ ଧାଇଲେ, ଯୌବନ ଶିଥିଳ I..

ତୁମେ ଯେ ପୁରୁଣା ଅଖୋଜା ଆଇନା 
ସ୍ମୃତିରାଜି ହୀନ , ବିଦୀର୍ଣ୍ଣ ଶ୍ରୀହୀନା 
ଅନ୍ତରାତ୍ମା ଯେ ଆହତ, ଅର୍ଥହୀନ ଚରିତ୍ର 
ଜୀବନ ସଂଗୀତ ଖାଲି ଅର୍ଥରେ ସଂଚିତ 
ପୁରୁଣା ଡ଼ାଇରୀ ପୃଷ୍ଠା ଯେ ସୀମିତ ......

Friday, 26 August 2016

मदहोशी की आलम थी...


मदहोशी की आलम थी, 
होश की बात निकल आई I 

डर डर के कुछ लिख डाले,
मज़ाक थे हम , नज़र दे डाले
बात होश की थी ,
आज बेहोशी में जुबाँ दे डाले I 

कुछ जो, ना बने हक़ीकत
बयान हुआ और खो गया , 
मुझे आज़ाद कर गया..
दिल महफूज़ और
रिश्ते आज़ाद कर गया I 

रंग बदल ने से पहले 
तसबीर सामने आए 
मंज़ूरे खुदा यही था.....
सारे आम 
जो कबुल ना था, 
कहानी मे आए शायद मंज़ूर था I 

दिल की आवाज़ को हम ने 
इस दर्पण में उतार दी, 
जो दर्पण भी आप हो 
साया दिखे, बाकी गुम हो ई

रचना: प्रशांत  

Saturday, 20 August 2016

एक चूहा बड़ा मस्त मिला!




आज देखा,
शुरू  हुआ एक सिलसिलाा,
एक चूहा बड़ा मस्त मिला ,
मौला था वो ,
बोला मौला से मिला I

कुछ बात, 
इन जाम मे है जनाब
चोर हैं हम,
मुहब्बत मे जनाब, 
दे पनाह,
राहेरात कर दे रोशन ,
दे पनाह,
मेरे सुबह कर दे रोशन I

बोला उस्ताद, 
ना करे हम से गीला,
मौला हू मैं भी 
आज मौला से मिला I

राज़ इनसे ताज़ इनसे, 
और ये खुदा का खुदा, 
इनके दामन, छोड़ ना सके ,
इनसे सीखा,
हम आपसे फिदा I

ये सुन 
एक मुस्कान नज़रे दीदार हुआ ,
आशियाना जो महखाना हुआ,
भाई शेर था चूहा, फिर बोला,
बड़ी आरमान था उस्ताद ,
आज बना रिश्तों से रिश्ता,
और जुड़ा आप से रिश्ता I 

रचना : प्रशांत 

Tuesday, 9 August 2016

फ्रेंडशिप डे !!!


"दोस्ती पानी पे लिखी इबारत नहीं
आसमान में घुलती सियाही नहीं 
ये तो दिल पे लिखी 
एहसास की मासूम इबादत है I"

यार तेरे क़र्ज़ का यह सफ़र, 
यह ज़िंदगी तुझपे फिदा, 
तुझसे ही ज़िंदा, आज मैं  ज़िंदा,
आवाज़ तू सून, दे मुझे आवाज़, 
आजमा ले वो इतिहास ,
एहसास आज करले ज़िंदा I

ज़िंदा हू तेरे खातिर,  
नज़र आए, कभी नज़रों से दूर,
गुज़रे जो पल, हमारे वो कल,
एहसास आज भी है ताज़ा
बचपन वो जवानी, आज भी है ताज़ा I 

रचना : प्रशांत 

Monday, 1 August 2016

रोज़ शाम की बात !


दिल की बात, दिल ही जाने,
बस दिल्लगी पे उतर आता है, 
नज़र फिराए, नज़र चुराए,
नज़र घुमाए, नज़र मे आए,
ना किसि को नज़र  आता है 
ना किसी कि नज़र को भाता है I
तनहा वापस फिर आता है I

ठेस लगा जब यह देखा,  
बेज़ुबान बहरा बयान कर लिया,
हसीन सा पैगाम नज़र करा दिया, 
शाम को एक हसीन तोहफा दिया  
इधर ना जुबा साथ दिया  
ना जवानी कुछ  बोल पाया I 

चल दिए फिर से ख़ामोशी ओढ़े,
आँखों में नमीं, दिल में मायूसी ओढ़े I 

हर बार सोचते हैं की आज तो कह ही देंगे 
बस बात दिल की आज खोल ही देंगे
पर ज़ुबान कमबख्त हिलने से मना करती है I 

कौन जाने वो दिन कब आएगा 
जब ये मुख उनसे कुछ बोल पायेगा 
खैर जब तक कहना  बाक़ी है 
समझेंगे उनका हमसे मिलना ही बाक़ी है I

रचना : प्रशांत 

Thursday, 21 July 2016

चाँद को क्या मालूम...



चाँद को क्या मालूम चाहते हैं उसे कई धरती वाले
दूर रहकर मगन अपनी किसी ख़यालों में
भूल चला चाहनेवालों को
किसी जाने अनजाने महबूब की खोज में I


ए चाँद
एक नज़र इधर भी
हम भी हैं आशिक़ तेरे दीदार के प्यासे
कुछ बातें हम से भी किया करो
महफ़िल हमसे भी सजाया करो।

रचना : मीरा पाणिग्रही 

Sunday, 10 July 2016

थोडिसी बेवफ़ाई जी लेने दो !





छूट गया जीना, कबका मेरे यारो ..
संभले हुए यारो, जलते हुए यारो 
मन उड़ जाए, आसीकी उतर आए 
आवारा जग ढूंदे, लापता जाग जाए I

यह नशियत और ना दो हुज़ूर
इख्तियार, इस्क़ हुकूमत गया
बहुत हो गया, मन का नैया   
मन की धारा ये उमर का घेरा
ना जाने दिल, दिल है कन्हैया I 

दिल चुपके तरसे और चाहे 
कही घूम आए, कही गुम जाए 
कोई हिसाब ना माँगे, खो जाए 
हसीन  पल चुपके फ़िर आए I

क्या बताए दिल कब कब चाहे 
कहानी बने, इतिहास ना लिख पाए 
ना कोई रिश्ते इतिहास नज़र आए 
भूले कुच्छ पल आए, महफ़िल सजाए 
बहकाए, महकाए, नज़राना दे सताए I

रचना : प्रशांत 

Wednesday, 6 July 2016

कॉर्पोरेट चेस !







यह कोर्पोरेट महफ़िल है जनाब,
जहाँ लीडर डंका बजाता है, 
उनका हे दुनिया, चाहने से है दुनिया,
याद  बार बार दिलाता  है I


जब तब महफ़िल जमाए, बुलाते हैं
कभी खत, बे-खत  बुलाते हैं
तारीफ़के दो बोल, भूल जाते हैं
दोहराते  है वो नाम और काम 
नये गुमनाम, क्या करे सब काम ??

महफूज़ मेरे आका, मेरे हुज़ूर,
भरे आरमान, और भरे इनसे, 
दिल-ए-मक़सूद, दिल-ए-फरमान,
इनसे बने पहचान , मेरे ईमान I

कहानी बन जाए, इशारा ये आए,  
शाबाशी के फूल तुमसे बरस जाए , 
महफ़िल-ए-काबिल महफ़िल को तरसे,
एक और प्यादा लीडर बन जाए , 
एक और गुमनाम, चुप रह जाए ई

रचना : प्रशांत 

Thursday, 9 June 2016

आईने से मुलाक़ात !

चित्र साभार :http://spiritualcleansing.org/wp-content/uploads/2015/12/Its-not-denial.-Im-just-selective-about-the-reality-I-accept..jpg

इतेफ़ाक़ से आईने के सामने खुदको जो पाया...
घबराया, क्या ये शीशे को भी नज़र लग गया.. 
सामने मेरे वो खड़ा, मुझे यू पेश किया .....
ना नज़र जवां  था, ना जवां था साया I 

दोष इन नज़रों को हम ना दे पाए,
आज भी ये हसीन तोहफे न कबूल करे ...
कहीं कहीं रुक जाए, पर थम ना जाए
आपने सपने को जकड़े, हक़ीक़त बताए
अब हम क्या करे,
नज़र छोड़, बाकी उम्र के आड़े चले.. 
तो नज़र बिचारा क्या करे I 

अच्छा हुआ, ना शीशा  देख पाए 
ना ज़ुबानसे कुच्छ कह पाए...
तेरी नज़रोंसे तेरे परच्छाई तुझे दिख जाए ....
ज़ुबान बहके , ना माने, 
तू कुछ और बयान कर जाए I

रचना: प्रशांत 

Friday, 3 June 2016

छाछ से बुझती प्यास!

       Pic Courtesy:https://eatlivemerry.files.wordpress.com/2012/07/firstshot_4059.jpg
                                                  (इन बियर की बोतलों में छाछ भरा है !)



कसम बिहार की, केरल कहो या गुजरात की, 
पीनेवालों की डोली, महफ़िलसे उतरे खाली,
यादों से भर भर लेते हैं , तमन्ना मदहोशी की, 
नशेमन हम पिते हैं, छाछ दो बोतोल की I

मिसाल सुनाए, परमेश्वरको मनाए, समझाए,
एक बिचारी बीवी क्या क्या झेल ना जाए, 
हमे दे दुआ, कहे देखो बदल गये उस्ताद,
छाछ परखो, बात परखो, उस्ताद से सीखो I 

एक परिचित, बीवी से हारा, शराबी बेचारा,
पहुँचा आशियाने, मेरे ठिकाने, मुझे पहचाने,
और कहा उस्ताद,
दूध और छाछ की कहानी, आप की बानी, समझ ना आनी,
बच्चों  का ये हक़ , दूध या छास, ना करे परिहास
कैसे उनके मुह से छिने, डिमांड बढ़ाए, कीमत बढ़ाए 
यह सुन उस्ताद घबराए, जवाब का नशा फिर चढ़ जाए,
एक और छास मारे, पर जवाब ना आए I

रचना : प्रशांत  

Tuesday, 24 May 2016

क्या दूँ खुद को ???



किस बात को लेकर घमंड करूँ,        
किस बात को लेकर घमंड करूँ,
ख़ुशी की कीमत मे आंसू बहाऊँ,
ख़ुशी की भी कोई कीमत लगाऊँ I

तनहा कुर्सी  ले उड़ जाऊं,
ताज़ पहनकर राजा कहलाऊँ,
बचाऊँ  कुर्सी, भागता रहूँ,
ख़ुशी की कीमत मे आंसू बहाऊँ,
ख़ुशी की भी कोई कीमत लगाऊँ ई

किस बात को लेकर घमंड करूँ,
कुर्सी का चक्कर, कुर्सी की फिकर ,
चक्कर से आमिर, तुझे चक्कर का फिकर ,
पर वक़्त निकल जाए , वक़्त ना आए ,
क्या दूँ खुद को, यह समझ ना आए ई

रचना : प्रशांत 

Monday, 2 May 2016

ना तलाक़ की बात हो सकी...

ना तलाक़ की बात हो सकी,
ना मिलने की दावात मिल सकी,  
आज़ाद हम अलग अलग चले,
रिश्ते मे बँधे रिश्ते से जुदा हम चले I

अब अलग हुए, अब आज़ाद हुए,  
ना आपके हुए, ना अपनो के हुए, 
फरेबी का नक़ाब, दुनिया का दस्तूर, 
दुनिया के लिए, दुनिया के हुए I 


रचना :प्रशांत 

Thursday, 24 March 2016

होली है भाई होली है !






आया बसंत अब  बरसेगा रंग,
तौहार ये प्यार मे रंग बरसेगा,
पिचकारी से किल्कारी बरसेगा, 
मान, अभिमान, घाओ माफ़, 
प्यार बरसेगा बादल बरसेगा I

राधा देवी यह पल को तरसे,
मीरा चुप चुप रोए और हँसे,
गोपी दीवाने किशन गुण गए, 
भक्त खेले होली हरी के बोल जमाए ,
नगाड़ा बजाए परमानन्द को पाए I

रचना : प्रशांत

Friday, 18 March 2016

इस्तीफा से पहले!




खुद तू चाहे, नये नगरीमे आ बस पाए ,
अलग क़ानून के दायरे, जी फिर जाए ,
सुकून तू पाए, सुकून खरीद तू पाए , 
ज़िंदगी तू तलाशे , और ज़िंदगी तुझे पाए , 
फिर क्यू यह उलझन , जब वो दिन आए I 

नाव तू बदले, मंज़िल और करीब लाए,
फिर क्यू चेहरा दिखे, सोच ये गहरा,
आप से हारा, ना अपनो के दे सहारा,
दो शहर  मे बस्ती है तेरा, 
दो नाव का कश्ती है  तेरा I 

रचना : प्रशांत 

Tuesday, 23 February 2016

रिहाई तुझे नसीब हो!



क़ैद किसी और दुनिया मे तू भी,
बना ले दुनिया जी कर रिश्ते तू भी,
हर पहचान तेरी तुझे लगे चेहरेेे अपने, 
निभाले रिस्ते वो जाने या रहे अंजाने I 

मन हो अगर आसमान भी छु ले, 
मन की मान और मन बना ले, 
दायरे मे रिश्ते, अंजान निकल तू प्यारे, 
सुकून हो राहे , जि अलग बाकी सारे I

रचना: प्रशांत 

Thursday, 11 February 2016

नौकरी : क्या यही तेरा पहचान!



                                                         

यह पहचान की रिश्ते कब तक यारों
जो तुमसे पुराने हो भी जाए यारों 
और भी ख्वाईशे दस्तक दे याद आए 
दर्पण मे दिखे, गुम वोही रह जाए I 

अब जी लो, अपने बाकी तेरे और भी पहचान, 
मासूमियत वो पहचान, इंसानी वो पहचान,
आजमा ले जीतने बाकी रूह की ग़ज़ल,
लहराने दे बह जाने दे, महफिले माहौल,
ख़तम हो जिनमे जंग और उलझन,
नफ़रत जाए दफ़न, सॉफ दिखे दर्पण I

Sunday, 7 February 2016

दिल की दास्तान दिले अंजान क्यू बने

दिल की दास्तान दिले अंजान क्यू बने, 
जो ना दे पनाह, वफ़ा उनसे क्यू बने, 
क्यू ना कदम कही और, मूड ना जाए,
क्यू ना ये इश्क़ नाकाम , मर ना जाए I 

जज़्बात क़ैद कोठे मे लगे , दिल बहलता रहे, 
दिल  क़ो जो लगे रिश्ता , वो मंज़र दिख ना पाए,  
बने महबूब की तवायफ़, नसीब इतना ना होए, 
घुँगरू छमछम इशारों की मोल, दूर और जाए I 

रचना : प्रशांत  

Thursday, 28 January 2016

फिर वोही बात -II





क्या कहें के हम आज फिर,
गुम हुए खुद से,
निभाए रिश्ता कितने भी इन गलियों से ,
फिर गुम हुए इनसे I

कुछ आज़ादी इतनी सी, अगर मिल जाती,
जी लेते हम भी एक अपनी पहचान
ना होता एहसास नकामी नासमझकी,
ना होता परछाई  बेवस, कायासे अंजान I

ना हुए कल के, अब हम
ना जुड़ पाए किसी आज से
आदेश हो यारो यह भी केह दे ,
या ना कभी यह भी कह पाये,
एक हसीन वक़्त की सज़ा,
काटे, गुम हुए इनसे,
वोही वक़्त की तलाश मे,
फिर गुम हुए खुद से I




रचना :प्रशांत

Thursday, 21 January 2016

एक खामोश वादा !




धोके मे रहना और ना दे सुकून, 
दिल के ना हो पाना, ना दे सुकून, 
एक कोशिश रब्बा हमसे तू कर ले,
एक घर रोशन हमसे तू कर ले I

यह कोशिश गर हमसे हो पाए,
एक ग़रीब, सीना तान उतर आए, 
तक़दीर बदले, यह रिश्ते ना बदले,
भूल भी जाए, दिल के फिर हो जाए ई

रचना:प्रशांत 

Friday, 8 January 2016

नसीहत मान लो जनाब!

चित्र साभार : http://www.piubenessere.it/wp-content/uploads/2014/06/1367484.jpg

ज़िंदगी तुझे जीना आज भी जारी है,
राह से जुदा यह राही आज भी है, 
ऐ ज़िंदगी, मैं तुम्हे समझ न सका,
तेरे समझदार नासमझ मुझसे रहे I

मुझसे नाराज़ करे बार बार ये शिकायत, 
शिकस्त मेरी कश्ती बाकी और क़यामत, 
क्या ख़ास जी रहे हो जनाब ये ज़िंदगी,
क्या ख़ास आप जुड़े हो, जीकर ये जिंदगी I

सुन भाई नीयत यहाँ देखी नही जाती, 
रिश्ते यहाँ तराजू से नापी नही जाती, 
और कमा ले तो बरकत मिल जाती,
जिंदगी जिेने वालो को खुदा के करीब,
लेकिन इंसान कही नही जाती I

रचना : प्रशांत